दोस्तो इस पोस्ट में भारत में कंपनी शासन की स्थापना Sugam history class 8 chapter 5 solution पूरा देखने वाले है अगर इस पोस्ट में कोई प्रॉब्लम हो तो हमे comment करके जरूर बताएं हम अपडेट कर देंगे
Sugam history class 8 chapter 5 solutiuon:अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. विदेश में किस प्रकार के भारतीय कपड़े की माँग थी?
उत्तर:-छापेदार सूती कपड़े जिसे शिंज़, कोसा (या खस्सा) और बंडाना कहते थे। इस तरह के कपड़ों की विदेश में माँग थी।
2. किस प्रकार के कपड़े को विदेशी शिंज कहते थे?
उत्तर:-छापेदार प्रकार के कपड़े को विदेशी शिंज कहते थे
3. बारीक कपड़े का नाम मस्तूिन क्यों दिया गया?
उत्तर:-यूरोप के व्यापारियों ने इराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास बारीक बुनाई का कपड़ा देखा तो मोसूल शहर के आधार पर उसे ‘मस्लिन’ कहने लगे।
4. इंगलैंड में कैलिको अधिनियम क्यों पारित किया गया ?
उत्तर:-भारतीय कपड़ों के आयात पर रोक लगाने के उद्देश्य से इंग्लैंड में कैलिको अधिनियम पारित किया गया था
5. स्पिनिंग जेनी और फ्लाईंग शदल क्या थे?
उत्तर:-स्पिनिंग जेनी और फ्लाईंग शट्ल एक प्रकार का मशीन है जिसके कारण कपड़ा उत्पादन में वृद्धि हुई
6. कपड़े के बदले विदेशियों से भारत को क्या प्राप्त होता था?
उत्तर:-कपड़ा के बदले भारत को विदेशों से सोना-चाँदी प्राप्त होता था
7. भारतीय कपड़े पर चुंगी बढ़ाने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:-भारतीय कपड़े पर चुंगी बढ़ाने से इनकी कीमत बढ़ गई और खरीददारों की संख्या घट गई
8. मुक्त व्यापार क्या था?
उत्तर:-देशों द्वारा आयात-निर्यात में भेदभाव को समाप्त करने की नीति को “मुक्त व्यापार” (Free trade) कहते हैं। राष्ट्रीय आंदोलन में चरखा का क्या महत्त्व था?
9. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में चरखा का क्या महत्त्व था?
उत्तर:-चरखा के उपयोग से बल के रूप में काम करने के लिए विभिन्न जातियों और धर्मों से संबंधित लोगों को एकजुट करने में मदद की
10. भारत की प्रथम आधुनिक कपड़ा मिल कहाँ खोली गई थी?
उत्तर:-आधुनिक ढंग की सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकाता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गयी थी
● आधुनिक ढंग की सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकाता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गयी थी, किन्तु यह असफल रही। पुनः 1851 में मुंबई में एक मिल स्थापित की गयी, जो असफल रही। सबसे पहला सफल आधुनिक कारख़ाना 1854 में मुम्बई में ही कावसजी डाबर द्वारा खोला गया जिसमें 1856 में उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
11. माइकल फैराडे कौन था?
उत्तर:-माइखल फ़ैरडे एक अंग्रेजी वैज्ञानिक थे जिन्होंने विद्युच्चुम्बकत्व और विद्युद्रसायन के अध्ययन में योगदान दिया था।
12. वुट्ज स्टील में किसकी मात्रा अधिक होती थी?
उत्तर:-वुट्ज स्टील में कार्बन की मात्रा अधिक होती थी
13. बुद्ध स्टील का प्रयोग किसमें किया जाता था?
उत्तर:-वुट्ज स्टील का प्रयोग विभिन्न प्रकार के औजार बनाने में होता था
14. वुद्ध स्टील की विशेषता क्या थी?
उत्तर:-वुट्ज स्टील की विशेषता यह है कि या कठोर होती है तथा इस से बनी तलवार की ब्लेड तेज धार वाली होने के साथ-साथ दृढ़ होती है
15. मध्य भारत के जंगलवासी इस्पात बनाने का कार्य क्यों करते थे?
उत्तर:-विभिन्न जंगली क्षेत्रों में भारी मात्रा में लौह अयस्क पाए जाने के कारण मध्य भारत के जंगलवासी इस्पात बनाने का कार्य करते थे
16. अगरिया जनजाति लोहे को हथौड़ा से क्यों पीटती थी?
उत्तरः-अगरिया जनजाति लोहे को विभिन्न आकार देने के लिए हथौड़ा से पीटती थी
17. भारतीय इस्पात उद्योग के पतन का कोई एक कारण लिखें।
उत्तर:-भारतीय इस्पात उद्योग के पतन का एक कारण यह है कि औद्योगिक क्रांति के बाद लोहा और इस्पात इंग्लैंड से भारत आने लगा।
18. जमशेदजी टाटा ने किसके सुझाव पर लौह अयस्क के सर्वेक्षण के लिए अपने पुत्र को छत्तीसगढ़ भेजा था?
उत्तर:-अमेरिकी भूवैज्ञानिक चार्ल्स पेज पेरिन के सुझाव पर
19. प्रथम विश्वयुद्ध से टिस्को को क्या लाभ हुआ?
उत्तरः-प्रथम विश्वयुद्ध के कारण टिस्को को बहुत लाभ हुआ। रेलवे के विस्तार करने के लिए ब्रिटिश सरकार टिस्को के बने स्टील खरीदने लगी।
Sugam history class 8 chapter 5 solution:लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्रमुख भारतीय शहरों की उत्पादित एवं निर्यातित वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर:-ढाका, अहमदाबाद, मसूलीपट्टनम (मछलीपट्टनम) के सूती कपड़े; मुर्शिदाबाद, लाहौर, आगरा के रेशमी; कश्मीर, लाहौर के ऊनी वस्त्र तथा सोना, चाँदी, हाथीदाँत की बनी वस्तुएँ; गहने, आदि भारतीय शहरों की उत्पादित एवं निर्यातित वस्तुओं थे।
2. भारतीय बुनकर द्वारा कपड़ा बनाने की विधि का उल्लेख करें।
उत्तरः-सूत कातना कपड़ा उत्पादन का सबसे पहला चरण था। धागे को चरखे पर कातकर तकली पर लपेट दिया जाता था जब कताई पूरी हो जाती थी तो भारतीय बुनकर इस धागे से कपड़े बनाते थे। रंगीन कपड़ा बनाने के लिए रंगरेज इस धागे को रंग देते थे। छपाई का कार्य बुनकरों का माहिर वर्ग चिप्पीगर किया करता था
3. जामदानी की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:-जामदानी कपड़े का उत्पादन ढाका और अवध में होता था और इसकी विशेषता थी कि इस कपड़े में रंगीन, काले सफेद, सोने तथा रुपहले रंगो के धागे का प्रयोग किया जाता था
4. बंडाना का प्रयोग कहाँ और कौन करते थे? इसका बंडाना नाम क्यों पड़ा?
उत्तर:-बंडाना का प्रयोग राजस्थान और गुजरात में वहां का पुरुष अपने सिर पर बांधने में करते थे चुकी वे अपने सिर पर बांधते थे इसलिए इसका नाम बंडाना पड़ा
5. मस्लिन और कैलिको क्या है? दोनों में अंतर बताएँ।
उत्तर:-मस्लिन और कैलिको भारतीय कपड़ों की प्रकार है इराक के मोसुल नगर में बारीक भारतीय कपड़े को देखकर मस्लिन नाम दिया तथा कालीकट में बने कपड़ों को कैलिको नाम दिया। मस्लिन का प्रयोग फैशन परस्त महिलाएं करती थी जबकि कैलिको का प्रयोग साज-सज्जा में किया जाता था
6. इंगलैंड के उद्योगपतियों ने भारतीय कपड़ा उद्योग को कैसे नष्ट किया?
उत्तर:-1770 के दशक में कैलिको अधिनियम की वापसी के बाद ब्रिटिश संसद ने भारतीय उत्पादों पर ऊंची चुंगी लगाई। इससे इनकी कीमत बढ़ गई और खरीददारों की संख्या घट गई। इसके विपरीत ब्रिटिश वस्तु की कीमत कम थी जिससे वे भारी मात्रा में बिकने लगे इससे भारतीय कपड़ा उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, इसके बाद इंग्लैंड की सरकार ने मुफ्त व्यापार की नीति अपनाई जिससे इंग्लैंड के अन्य व्यापारियों लिए भारत से व्यापार करना आसान हो गया। भारतीय बाजार में मशीन द्वारा उत्पादित वस्तुओं की भरमार हो गई इस प्रकार इंग्लैंड के उद्योगपतियों ने भारतीय कपड़ों को नष्ट किया
7. विकट परिस्थिति में भी भारतीय कपड़े की माँग कम नहीं हुई थी। क्यों?
उत्तर:-18वीं सदी के आरंभिक काल में ब्रिटिश उद्योगपतियों ने भारतीय कपड़ों के आयात पर रोक लगाने के उद्देश्य से कैलिको अधिनियम (1721) पारित करवाया। फिर भी, भारतीय कपड़ों की माँग यूरोप में कम नहीं हुई। इसका कारण था भारतीय कपड़ों की गुणवत्ता।
8. भारतीय कपड़ा उद्योग को विकसित करने में प्रथम विश्वयुद्ध किस प्रकार सहायक हुआ?
उत्तरः-प्रथम विश्व युद्ध से ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त हो गए इससे भारत में वास्तविक रूप से सारे आयात बंद हो गए जिससे भारतीय कारखानों को घरेलू बाजार के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं उत्पादित करने का अवसर मिल गया। भारतीय कारखानों में फौज के लिए जूट की बोरियां फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े आदि बनने लगे इस प्रकार भारतीय कपड़ा उद्योग को विकसित करने में प्रथम विश्वयुद्ध सहायक हुआ
9. बुर्ज स्टील नाम क्यों पड़ा? इसके बनाने की विधि लिखें।
उत्तर::-लकड़ी के छोटे टुकड़ों के साथ एक विशेष प्रकार के पेड़ के पत्ते तथा काली रेत, जिसमें लौह अयस्क (iron ore) मिले होते थे, को मिलाकर एक शंकुरूप घड़िया (conical crucible) में रखा जाता था। ईंट तथा गीली मिट्टी से इस पात्र (भट्टी) को बनाया जाता था। भट्ठी में आग लगाई जाती थी। भैंस के चमड़े से बनी धौंकनी द्वारा भट्ठी में हवा देकर तापमान को इतना बढ़ाया जाता था जिससे मिश्रण से वुट्ज स्टील बन जाता था। गुजराती भाषा में इस्पात को वुज कहा जाता है और कन्नड़ तथा तेलुगु भाषा में उक्कू। यूरोपियनों ने इन दोनों स्थानीय शब्दों को मिलाकर वुट्ज स्टील का नाम दिया।
10. ब्रिटिश शासन ने भारतीय इस्पात उद्योग को कैसे नष्ट किया?
उत्तर:-सदियों से भारत में लोहा तथा इस्पात बनाए जाते थे परंतु 19 वी सदी में ब्रिटिश विस्तार से यह कार्य धीरे-धीरे समाप्त हो गया। औद्योगिक क्रांति के बाद लोहा और इस्पात इंग्लैंड से भारत आने लगा। भारतीय लोहार, औजार तथा बर्तन बनाने वाले इंग्लैंड से आए लोहे और इस्पात का प्रयोग करने लगे। क्योंकि इंग्लैंड में बना लोहा अधिक परिष्कृत होता था इसका प्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय इस्पात उद्योग पर पड़ा इस प्रकार ब्रिटिश शासन ने भारतीय इस्पात उद्योग को नष्ट किया
11. 1881 के अधिनियम से मजदूरों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:-1881 के अधिनियम का उद्देश्य श्रमिकों की कामकाजी परिस्थितियों में सुधार करना था इस अधिनियम से मजदूरों को काम करने का समय घट गया तथा नियमित और निश्चित वेतन देने की व्यवस्था की गई
Sugam history class 8 chapter 5 solution:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय कपड़ा उद्योग का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:-ब्रिटिश शासन के पूर्व भारत विश्व का प्रमुख कपड़ा निर्यातक था। भारत में कई बुनकर समुदाय थे जिनका प्रत्येक पीढ़ी कपड़ा उद्योग से जुड़ी हुई थी। सूत कातने से कपड़े बनाने तक सभी कार्य ये अपने घर में ही करते थे। कपड़ा उद्योग से लाखों लोग अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। भारतीय कपड़े (सूती व रेशमी) दुनियाभर में प्रसिद्ध थे। इनके नाम इनके उत्पादन तकनीक पर रखे गए थे। इराक के मोसूल नगर में बारीक भारतीय कपड़े को देखकर यूरोपीय व्यापारियों ने मस्लिन नाम दिया। मलमल मस्लिन की उत्कृष्ट किस्म थी, जिसे यूरोप की फैशनपरस्त महिलाएँ पहनती थीं। इंगलैंड की रानी भी इस कपड़े को पहनती थीं। भारत के कपड़ों की बढ़ती माँग के कारण ब्रिटिश व्यापारी इनका भारत से बड़ी मात्रा में निर्यात करते थे।
2. ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति का भारतीय कपड़ा उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-भारत के आर्थिक समृद्धि का प्रधान कारण सूती कपड़ा का हथकरघा उद्योग था। अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक यूरोप, भारत में तैयार वस्तुओं का खरीददार था, परंतु औद्योगिक विकास से इंगलैंड के उद्योगपति अपनी वस्तुओं का उत्पादन करने लगे। यूरोप का शिल्प उद्योग भारतीय शिल्प-उद्योग के साथ प्रतियोगिता करने में सफल नहीं हो पा रहा था। अतः अपने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इंगलैंड ने सन् 1720 ई० में कैलिको अधिनियम बनाया। इसके अनुसार भारत के बने छापेदार सूती कपड़े और छींट के आयात को इंगलैंड में रोक दिया गया। भारतीय कपड़ा उद्योग का वास्तविक पतन 1813 में अपनाई गई मुक्त व्यापार की नीति से हुआ। इसने भारतीय व्यापार पर से कंपनी का एकाधिकार समाप्त कर दिया। अब इंगलैंड के अन्य व्यापारियों के लिए भारत से व्यापार करना आसान हो गया। भारतीय बाजार में मशीन द्वारा उत्पादित वस्तुओं की भरमार हो गई। परिणामस्वरूप भारतीय बुनकरों एवं सूत कातने वालों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी।
3. आधुनिक भारतीय कपड़ा उद्योग का विकास संक्षेप में लिखें।
उत्तर:-19वीं सदी में पतनशील भारतीय कपड़ा उद्योग में परिवर्तन हुआ। बंबई में पहला सूती कपड़ा मिल 1854 में कावसजी नानाजी दाभार द्वारा खोला गया। इसके बाद 1880 के दशक में शोलापुर, नागपुर, अहमदाबाद, कानपुर आदि में कई कपड़ा मिलें खुलीं। अनेक बेरोजगार बुनकरों को इन मिलों में काम मिला। ये मिल भारतीयों द्वारा खोले गए थे। इन मिलों में विदेशी मशीनें लगाई गई थीं । परंतु, भारतीय औद्योगिकीकरण को सरकार से किसी प्रकार का प्रोत्साहन न मिलने और आयातित कपड़ों पर चुंगी न लगाने से भारतीय उद्योग अधिक विकसित न हो पाए। लेकिन उसका तेजी से विकास सन् 1914 के बाद ही हो सका। 1945 ई० तक इंगलैंड को दो विश्वयुद्धों एवं कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। परिणामतः इंगलैंड से भारत में आने वाले सामानों में कमी होने लगी, जिससे भारत में उत्पादित वस्तुओं की बिक्री बढ़ गयी और उत्पादन पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ा। 1914 में भारत विश्व के पाँच प्रमुख कपड़ा उत्पादक देशों में शामिल था।
4. ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय इस्पात उत्पादन का विवरण दें।
उत्तरः-प्राचीनकाल से भारत में कच्ची धातु (लौह अयस्क) को गलाकर लोहा निकाला जाता था। फ्रांसिस बुकानन ने अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान मैसूर में वुट्ज़ स्टील बनाने का उल्लेख किया है। यह मजबूत तथा बहुत अधिक लचीला होता था। इस गुण के कारण वुट्ज इस्पात से भारत में विभिन्न प्रकार के औजार तथा हथियार बनाए जाते थे। वुट्ज इस्पात की उच्च गुणवत्ता के कारण सीरिया जैसे पश्चिमी एशिया के कई देशों में इसका आयात किया जाता था। विभिन्न जंगली क्षेत्रों में भारी मात्रा में लौह अयस्क पाए जाने के कारण जनजाति के लोग अपने तरीके से लोहा गलाने का कार्य करते थे। इस प्रकार, सदियों से भारत में लोहा तथा इस्पात बनाए जाते थे। परंतु, 19वीं सदी में ब्रिटिश विस्तार से यह कार्य धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
5. आधुनिक इस्पात उद्योग में जमशेदजी टाटा का क्या योगदान था?
उत्तर:-आधुनिक इस्पात उद्योग में जमशेदजी टाटा का महत्वपूर्ण योगदान था। 20वीं सदी में विभिन्न कारणों से भारतीय लौह उद्योग का पुनः विकास आरंभ हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार को भारतीय इस्पात पर निर्भर होना पड़ा। सरकार ने इस्पात के निर्माण संबंधी कानूनों में ढिलाई की। इसका लाभ जमशेदजी टाटा को हुआ। अमेरिकी भूवैज्ञानिक चार्ल्स पेज पेरिन के सुझाव पर टाटा ने अपने बड़े पुत्र दोराबजी टाटा को चार्ल्स वेल्ड (अमेरिकी भूवैज्ञानिक) के साथ छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क भंडारों की खोजबीन करने के लिए भेजा। इस क्षेत्र के सर्वेक्षण के दौरान डल्ली राजहरा क्षेत्र के एक गाँव में उन्हें अच्छी किस्म के लौह- अयस्क के भंडार मिले। परंतु, इस क्षेत्र में पर्याप्त जल की कमी होने के कारण कारखान स्थापित करना कठिन था। कुछ वर्ष बाद वर्तमान झारखंड के साकची नामक ग्रामीण क्षेत्र के निकट उच्चकोटि के लौह अयस्क प्राप्त होने पर टाटा ने यह स्टील कारखाना स्थापित किया। इस क्षेत्र के निकट खरकई तथा सुवर्णरखा नदियों से पानी उपलब्ध होने से कारखाना खोलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। 1912 में यहाँ से स्टील का उत्पादन होने लगा।