sugam history class 8 chapter 3:सुगम इतिहास class 8

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sugam history class 8 chapter 3

 

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sugam history class 8 chapter 3 solution in hindi
sugam history class 8 chapter 3

sugam history class 8 chapter 3:अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

4. महालवारी व्यवस्था स्थापित करने के पूर्व कौन-सी व्यवस्था की गई?

उत्तर:-महलवारी व्यवस्था स्थापित करने के पूर्व स्थाई बंदोबस्त की गई इस व्यवस्था से कंपनी को एक निश्चित आय प्राप्त हुए। इसमें लगान वसूलने का कार्य जमींदार को दिया गया जो वंशानुगत था

5. कंपनी को भारत में लगान संबंधी व्यवस्था क्यों करनी पड़ी थी? उससे क्या बदलाव हुए?

उत्तर:-कंपनी का प्रशासनिक विस्तार हुआ जिसके कारण प्रशासनिक अधिकारियों और सैनिकों को वेतन देना, व्यापार के लिए वस्तुएं खरीदना जैसे खर्चे के लिए कंपनी को लगान सूलने की व्यवस्था करनी पड़ी थी। इस व्यवस्था से किसानों को हानि हुई और ठेकेदारों को अधिक लाभ हुआ वे केवल कर वसूलने पर ध्यान देते थे कृषि सुधार पर नहीं

6. कंपनी की राजस्व नीति का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तरः-कंपनी के राजस्व नीति से अनेक किसानों को गांव छोड़कर दूसरे क्षेत्र में बसना पड़ा। ग्राम पंचायत के भूमि तथा न्यायिक अधिकार समाप्त हो गए। मुखिया सरकार का एजेंट बन गया। ग्रामीण जमींदार, गरीब किसान, भूस्वामी, कृषक तथा दास की संख्या में वृद्धि हुई। सामाजिक संबंधों में सहयोग की भावना के स्थान पर प्रत्याशी पर्दा तथा व्यक्तिवाद विकसित हुआ।

7. अनुबंध पर हस्ताक्षर करनेवाले नील की रैयतों को क्या-क्या प्राप्त होता था?

उत्तर:-अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाले नील की रैयतों को कम ब्याज दर पर खेती करने के लिए मालिक नगद देता है इसके अतिरिक्त बीज तथा उपकरण भी उन्हें दिए जाते थे

8. नील की रैयतों में असंतोष के क्या कारण थे?

उत्तर:-रैयतों के साथ एक अनुबंध कर बागान मालिक उन्हें नील की खेती के लिए कर्ज देता था प्रत्येक फसल के बाद किसानों को नया कर्ज मिलता था इस कारण वे कर्ज के बोझ से दब गए थे। लगातार नील की खेती होने से उनकी भूमि की उर्वरता खत्म हो जाती थी। उनका शोषण मालिक तथा महाजनों ने किया इन कारणों से रैयतों में असंतोष उत्पन्न हुआ

9. चंपारण के नील की रैयतों को क्या-क्या शतें माननी पड़ती थीं?

उत्तर:-चंपारण के किसानों को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे तीनकठिया पद्धति कहते थे। उन्हें नील बागान मालिकों को ही बेचना होता था। साथ ही, उन्हें कई प्रकार के कर भी देने होते थे। अपना खेत बेचने पर मालिकों को बड़ी धनराशि देनी होती थी

10. भारत में कंपनी ने कपास की खेती को कैसे विकसित किया?

उत्तर: भारत में कपास की खेती को विकसित करने के लिए नगर के महाजनों को अत्यधिक ऋण दिया गया। इन्होंने किसानों को अग्रिम • धनराशि देकर उन्हें अधिक मात्रा में कपास की खेती के लिए बाध्य किया। दक्षिण भारत में किसानों को बड़ी मात्रा में ऋण दिया गया। इस प्रकार, सरकार ने भारत में कपास के उत्पादन को बढ़ावा दिया।

sugam history class 8 chapter 3:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. कंपनी द्वारा की गई लगान संबंधी व्यवस्थाओं पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।

उत्तर:-भूमि बंदोबस्त की व्यवस्था की शुरुआत 1765 ई. में ईस्ट इंडिया. कंपनी को दीवानी पाने के साथ हुई। उसने पहले स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था की। जिसमें जमींदारों को भूमि का स्वामी बनाया। इसके तहत जमींदारों द्वारा लगान के रूप में जमा की जाने वाली राशि हमेशा के लिए तय कर दी गयी। फिर उन्हें लगा कि यह उचित नहीं था। चूँकि साल दर साल उनके खर्चे तो बढ़ते ही जाएँगे और लगान के रूप में आने वाली आय वही रहेगी। अतः उन्होंने फिर महालवारी व्यवस्था की जिसके तहत जमींदारों के बदले गाँव के बड़े किसान या परिवार को गाँव का लगान वसूलने का अधिकार दे दिया गया इसके तहत अंग्रेजों को 50 प्रतिशत लगान मिलना था और इसे मात्र 30 वर्षों के लिए लागू किया गया। जबकि रैयतवारी व्यवस्था के तहत कंपनी सरकार ने सीधा किसानों से संपर्क किया। किसानों को जमीन का मालिक बना दिया गया।

2. नील तथा कपास की खेती की विवेचना करें।

उत्तर:-कंपनी ने नील तथा कपास की खेती पर विशेष ध्यान दिया क्योंकि इनकी मांग यूरोप में बहुत थी। बंगाल, बिहार एवं आंध्र प्रदेश में प्रमुख तौर पर नील की खेती की जाती थी। जिन किसानों की भूमि बागान मालिक नील की खेती के लिए लेते थे उनके साथ भी एक अनुबंध करते थे। जिसके अनुसार रैयतों को कम ब्याज दर पर खेती करने के लिए मालिक नकद और बीज उपकरण भी देता था। अपनी जमीन के कम से कम 25% क्षेत्र पर नील की खेती करना अनिवार्य होता था। इसी के सम्मान कपास की भी खेती अंग्रेजों के लिए महत्वपूर्ण थी किसानों को अग्रिम धनराशि देकर उन्हें अधिका मात्रा में कपास की खेती के लिए बाध्य किया जाता था। नील के सम्मान 90% कपास भारत से ब्रिटेन निर्यात किया जाता था।

3. 19वीं सदी में किसानों के विद्रोह के क्या कारण थे?

उत्तर:-रैयतों को अपनी जमीन के कम-से-कम 25 प्रतिशत क्षेत्र पर नील की खेती करना अनिवार्य होता था। बचे हुए क्षेत्रों पर वे धान की खेती कर सकते थे। फसल की कटाई होते ही मालिक से उन्हें नया कर्ज मिल जाता था। आरंभ में नए कर्ज के प्रति रैयत आकर्षित हुए थे। परंतु, बाद में उन्हें यह बात समझ में आ गई कि प्रत्येक नए कर्ज से उनपर कर्ज चुकाने का बोझ बढ़ता जाता है। उन्होंने पाया कि मेहनत की तुलना में उनकी आमदनी बहुत कम होती थी। लगातार नील की खेती होने से उनकी भूमि की उर्वरता खत्म हो जाती थी। मिट्टी कमजोर हो जाती थी, जिस कारण उसपर अन्य फसलों को उगाना उनके लिए कठिन हो जाता था। बागान मालिक रैयतों से अपनी शर्तों पर जबरन नील की खेती करवाते थे जिसमें रैयतों को कम-से-कम लाभ होता था। इन कारणों से 19वीं सदी में किसानों ने विद्रोह किया

4. किसानों में राष्ट्रीयता की भावना क्यों विकसित हुई?

उत्तर:-19वीं सदी में रैयतों ने भूमि संबंधी बदलावों का विरोध किया। ये बदलाव थे- भूस्वामित्व से वंचित होना, लगान तथा किराया दर में वृद्धि, सामंती शोषण, कर्जदाताओं का शोषण, औपनिवेशिक दमन आदि। इसके विरोध में उन्होंने कई आंदोलन और विद्रोह किए, परंतु संगठन के अभाव में वे अधिक सफल नहीं हो सके। 20वीं सदी में वर्ग जागरूकता की भावना ने उनको संगठित होने के लिए प्रेरित किया। अनेक किसान सभाओं और दलों का निर्माण हुआ। इनके हित में भारतीय साम्यवादी दल ने आवाज उठाई और किसानों को जागरूक बनाया। गाँधीजी के विचारों से भी किसान प्रभावित हुए। जिसके कारण किसानों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई

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